मनुष्य अपनी सांस्कृतिक विरासत से प्राप्त तकनीक और प्रौद्योगिकी की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्यक्रिया करता है। महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है कि मनुष्य क्या उत्पन्न एवं निर्माण करता है बल्कि यह है कि वह किन उपकरणों एवं तकनीकों की सहायता से उत्पादन एवं निर्माण करता है
प्रौद्योगिकी से किसी समाज के सांस्कृतिक विकास की सूचना मिलती है। मनुष्य प्रकृति के नियमों को बेहतर ढंग से जानने के बाद ही प्रौद्योगिकी का विकास कर पाया है। उदाहरणतया घर्षण और ऊष्मा की संकल्पना ने 'आग के आविष्कार' में हमारी सहायता की ।
सभी विज्ञानों का जन्म प्रकृति से हुआ है। सभी उपकरणों की कार्यविधि और तकनीकों को हमने प्रकृति से सीखा है। अत: प्रकृति का ज्ञान प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। आरंभिक मानव ने स्वयं को प्रकृति के आदेशों के अनुसार ढाल लिया था क्योंकि उस समय मानव का सामाजिक- सांस्कृतिक विकास आरंभिक अवस्था में था तथा प्रौद्योगिकी न के बराबर थी । समय के साथ - साथ सामाजिक - सांस्कृतिक विकास होता गया । लोग अपने पर्यावरण और प्राकृतिक तत्त्वों को समझने लगेऔर सक्षम प्रौद्योगिकी का विकास होने लगा । मनुष्य अपनी बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति के बल पर अपने प्रयासों की छाप प्रकृति पर डालने लगा । प्रौद्योगिकी की प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य प्रकृति की सुनता तथा उसकी पूजा करता था ।
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